कल राह पर चलते वक़्त
एक बुज़ुर्ग आदमी पर नज़र पड़ी
भेष भूसा से वो एक आम आदमी लग रहे थे
वो एक सरकारी दफ्तर के आगे खड़े हुए
परेशान नज़रों से उसे घुर रहे थे ।
मैंने जाकर पुछा, की क्या बात है
उन्होंने कहा, बेटा
समझ नहीं आ रहा है अन्दर जाऊं या नहीं ।
जेब में सिर्फ १०० रूपये मात्र हैं
तिन दिन में इन्होने मेरे सारे पैसे ले लिए
एक छोटा सा काम करने के लिए
यह सोच रहा हूँ की
अगर मैंने यह १०० रूपये भी दे दिए
तो रात की रोटी कैसे जुटेगी ।
मेरी बीवी पिछले हफ्ते गुज़र गयी
अगर मैं भी उसके साथ ही मर जाता
तो उसका मृत्यु-प्रमाणपत्र लेने के लिए
मुझे इन लोगों के हाथों रोज़ मरना तो ना पड़ता ॥
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